Flower Petal 1 May 2020

*कोरोना काल की एक कविता*

कोई चाबी का छल्ला,
किसी कोने का बल्ला,
किसी के घर की खुरपी,
किसी दर्जी की कुरती,
कोई टुटा खिलौना,
कोई सुना बिछौना,
बहुत दिन से, युं ही
सुना पड़ा है।

सभी कष्टों से अपने,
दुर जाना चाहते हैं।
समस्या एक है,
सब पार पाना चाहते हैं।

मगर संशय यही है,कि
किसी को धन नहीं है,
किसी को मन नहीं है।

- हरि ओम शर्मा


Daily quotes

Flower Petal 28 April 2020

Flower Petal 29-04-2020

"हमारा मन जितना साफ होगा,हमारा लक्ष्य उतना ही स्पष्ट होगा। कई बार विचारों के उधेड़बुन में हम इतने खो जाते हैं कि वर्तमान से खो जाते हैं। इसलिए कम सोचिए, काम का सोचिए।"
-हरि ओम शर्मा
साभार- (Facebook profile)


Daily quotes

Flower Petal 28 April 2020

होते होते हो जाता है।

आशा के दीपक जलते हैं।
हम उम्मीदों में पलते हैं।
आशाएं धरी रह जाती है।
कुछ और घटित हो जाता है।

होते होते हो जाता है।

हम निश्चित सपने बुनते हैं।
हम रहबर अपने चुनते हैं।
चुनें हुए सब रह जाते हैं।
अन्य ही कोई आ जाता है।

होते होते हो जाता है।
                 ‌आगे जारी......

Sometimes I feel that even I am unable to understand what I wanted to say..
But,still inside me there is someone who understands it better than it should be understood..
I dream, I desire,
 I work because
He inspire...

-हरि ओम शर्मा
साभार :- Facebook profile

Flower Petal 27april 2020

कालनेमी का जानिए, इतना ही था काम।
भीतर रावण पल रहा, मुंह पर थे श्री राम। 
                             

ये युग कालनेमियों का युग है। बड़ा अद्भुत जीव था कालनेमी। हनुमानजी जैसे परम बुद्धिमान व्यक्ति को भी छल से भ्रमित कर चुका था। वो तो उनका सौभाग्य था कि सही समय पर दैवी संयोग से उन्हें उचित मार्गदर्शन मिला और रामकाज सफल हो सका। 
ऐसे गुरुओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है। अब आगे क्या होगा, राम ही जाने।
राम भजिए पर सतर्क रहिए। भक्ति में सतर्कता बहुत जरूरी है। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
:-हरि ओम शर्मा 

Daily message

इस समय का सबसे आसान कार्य है गाली देना और इसे आप बेख़ौफ़ कर सकते हैं।  आप ऊंचे से ऊंचे व्यक्ति को भी अपनी सुविधा अनुसार नीचे खींच सकते हैं। उनपर अपनी मनपसंद गाली चस्पा सकते हैं। जितनी बार चाहें उतनी बार चस्पा सकते हैं। 
आप अकेले नहीं हैं। आप एक निकालिए। आपके साथी के पास सदी के सबसे बड़ी शक्तिशाली यंत्र है जो आपके एक को अनेक बना सकता है। आपकी शक्ति बढ़ा सकती है।
एक सबसे सकारात्मक बात जो आपके पक्ष में है वह ये कि आप को अपनी गाली की जिम्मेवारी लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप चाहें तो उसे आगंतुक अथवा स्वयंभू आदि विशेषणों से भी सत्कार सकते हैं। 
आप अर्थ अनर्थ की चिंता न करें। अपनी रचनात्मकता पर ध्यान दें। हारने का तो सवाल ही नहीं है। आप किसी भी संरचना की गाली दे सकते हैं। समाज को सब स्वीकार्य है। आप हिन्दू हैं तो मुसलमान को दे दिजिए, मुसलमान है तो हिन्दू को दे दिजिए। ऊंची जाति के हैं तो नीची जाति को दे दिजिए, नीची है तो ऊंची को दे दिजिए। पुरूष है तो महिला को दे दिजिए, महिला हैं तो पुरुष को दे दिजिए। कांग्रेस है तो बीजेपी को दे दिजिए, बीजेपी है तो कांग्रेस को दे दिजिए। आप अपने विचार स्वतंत्र होकर रखे, आपको कोई नहीं रोकेगा। आप बस सीढ़ी चढ़ने की तैयारी करें। ऊंची से ऊंची गाली दे।आप हमारे भविष्य की भाषा है और भविष्य इसी भाषा की मांग कर रहा है। मैं-आप सभी इसकी मिठास का आनंद लेने को लालायित हैं। 
तो चलिए 'भद्रम् कर्णेभि श्रृनुयाम् ' का लालित्य बढावें।
एक नये विचारधारा को दृढ करें-#गालीगलौजवाद।

नोट:-  यह पुरा आलेख एक व्यंग्य मात्र है। मुझे आपकी जिस भावना को छुना था, मैं छु चुका हूं।आप मेरी बात से सहमत हों, न हो। आप स्वतंत्र है। 
 

daily quotes

Powerful Yuva Daily quotes:-
28-04-2020


27-04-2020
26-04-2020

25-04-2020



24-04-2020

23-04-2020

काव्य मंजूषा ७

"समुद्री जहाज किनारे पर सबसे ज्यादा सुरक्षित है पर वह किनारे पर रहने के लिए नहीं बनें.."
                                      - अल्बर्ट आइंस्टीन
जीवन में कई बार हम एक सुरक्षित स्थान पर जाकर स्वयं को रोक लेते हैं एवं भविष्य से समझौता कर लिया करते हैं। पर सदैव गतिशीलता के कारण ही इसकी प्रगति संभव है। गतिहीन बनाने से इसकी प्रगति तुरंत रुक जाती है।


                  
 चांद की शीतलता में,
संगीतमय निर्झर में,
मधुमय उपवन में,
प्रशांत-गुप्त गृह में,
खुद को भटकाना बंद करो,
मुंह छिपाना बंद करो।
जन्म तुम्हारा, छांव में 
सुकोमल तन सेंकने को नहीं,
प्रचंडतम‌ रश्मि-पुंज  बनकर
प्रज्जवलित होने को हुआ है।
जन्म तुम्हारा राह की राह 
ताकते, बटोही बनने को नहीं,
मशाल लिए कर में,
नवीन पथ सृजन को हुआ है।
मोहित, भ्रमित, आरोपित
कल्पनाओं से बाहर आओ।
पहचानो अपने अंतस‌ की 
तरल, तरुण, अग्निमय प्रेरणा।
मापो सागर की गहराई,
मापो अंबर की ऊंचाई,
आओ अब समय आ चुका है
जान लो विस्तार अपना।
                  
-हरि ओम शर्मा
हर हर महादेव



काव्य मंजूषा ६


हे देव! दिवस ऐसा भी हो।

हर स्वर में एकल राग उठे,
हर हवन कुंड से आग उठे,
सोया  हर चेतन जाग उठे,
हर उर से जड़ता भाग उठे।

हे देव! दिवस ऐसा भी हो।

गागर से अमृत छलक उठे,
हर रोम-रोम फिर पुलक उठे,
चिंगारी हर दिल  सुलग उठे,
सोयी ऊर्जाएं  से धधक उठे।


हे देव! दिवस अब ऐसा  हो।

किसी ओर से युं तुफान आए,
आलसी तनों में प्राण आए,
हर नर में स्वाभिमान आए,
ऊंचा जन-मन-गण गान आए।

हे देव! दिवस ऐसा ही हो।

भारत माता सम्मान पाए,
 ऐसा हम किर्तिमान लाएं,
हम फिर खोई पहचान पाए,
जन-जन जिससे कल्याण पाए।

हे देव! दिवस अब ऐसा दो।

 -हरि ओम शर्मा

गीत मंजूषा

१.साधु चला निज धाम रे।
दर-दर भटकन खत्म हो गई, मिल गया ऐसा ठाम रे।
घिसती  ऐंड़ी आज  हंसी  है, दर्द  हुआ आराम   रे।
अलख निरंजन अलख निरंजन जाप रहा है नाम रे।
अब  तो मौज  मनावे  साधु, करना  है  विश्राम रे।
कहे 'हरिहर' बोल रहे मनवा क्या बांकी है काम रे।
-हरि ओम शर्मा

काव्य मंजूषा ५

आपाधापी के पिछे भी एक निश्चित आपाधापी थी।
आपाधापी के आगे भी एक निश्चित आपाधापी है।
आए थे आपाधापी थी, जाओगे आपाधापी है।
जाकर के वापस आओगे, देखोगे आपाधापी है।
फिर क्यों बंजारा मन मेरा, युं बना हुआ संतापी है।
अब आ ही गए तो क्या डालना, 
                             "चलने दो! आपाधापी है।"  
- हरि ओम शर्मा 

 हर हर महादेव 🙏 🙏

काव्य मंजूषा ४

इक मोर्चा घर पर है बैठा,
और इक मोर्चा सड़कों पर..
इक बैठा है बड़े चैन से,
इक उबल रहा है सड़कों पर...

इक का दम घुटता है घर में,
इक घर जाने को सड़कों पर..
इक को जान नहीं है प्यारी,
इक जान बचाता सड़कों पर...

इक का तकिया पड़ा सेज पर,
इक का तकिया सड़कों पर...
इक की थाली में है रोटी,
इक की रोटी सड़कों पर..

क्या हालत हो गई देश की,
आग लगी है सड़कों पर..

- हरि ओम शर्मा

सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया...
 हर हर महादेव 🙏🙏

काव्य मंजूषा ३

Lockdown में घर वापस लौटने की कोशिश करते परिंदों को समर्पित-

बंजारों की टोली देखो, 
वापस घर को लौट रही है।
देश की हालत जन-जन के,
आंखों में आज कचोट रही है।

        कोई बसेरा मिला नहीं क्या?
        नहीं मिला क्या कोई ठिकाना?
        लिए एक ही उत्तर हैं ये,
       "हमको वापस घर है जाना"।

- हरि ओम शर्मा

हमारी कोई भी बात इनके समझ में नहीं आने वाली। इनकी मनोदशा को समझना चाहिए। अपना घर सबको प्यारा होता है। सरकार जोभी सक्षम प्रयास हो करें और इन्हें वापस इनके बसेरे पहुंचा दे। अन्यथा जल्द से जल्द कोई सरल उपाय निकाले। रोटी-रोजगार-रातगुजारी तीनों संकट में है।

हर हर महादेव 

काव्य मंजूषा 2

विधाता ने मेरे, है क्या मन में बोया..
न जाने कहां पर, हूं आकर मैं खोया..
न संगी, न साथी, न बंधु, न मितवा..
न अपना-पराया, न शत्रु न हितवा..
न जाने कहां फंस गया हूं मैं आकर ।
हूं बैठा किनारे,    मैं नैय्या डुबाकर  ।
बस इक आस है,कोई मुझको पुकारे।
लिए अपनी गोदी में,  मुझको दुलारे।

सुनो मां!
       कहां हो? तुम आ जाओगी न?
पुनः मेरे मस्तक को सहलाओगी न?
कहो और कितने  दिवस युं गुजारूं?
कहो कैसे स्वर में मैं तुमको पुकारूं?
क्षमा दो दया दो  मुझे अब बचा लो..
शरण में हूं आया  गले से लगा लो..

- हरि ओम शर्मा

हर हर महादेव  

काव्य मंजूषा 1

रावण मरा नहीं, रावन नहीं मरता, 
वह अजर है और अमर भी। 
आप हर साल उसके मरने की खुशी मनाते हो,
 पर भूल जाते हो 
कि अगले साल फिर आएगा। 
वह हर साल आकर 
ऋषियों का खून खिंचेगा,
देवताओं को तंग करेगा,
चहुंओर शांति भंग करेगा,
सीताओं को हरेगा
रामों को चुनौती देगा,
हर वर्ष,
उसका वंश खत्म होगा,
हर वर्ष,
उसका वंश पुनः जन्मेगा,
रावण ही नहीं ये सब भी,
अजर है और अमर भी,
ये नहीं मरते, ये नहीं मरेंगे,
आप हर साल इनके,
मरने की खुशी मनाते रहो,

ये नहीं मरें है, ये आपको मिलेंगे,
आपके गांव-समाज के बीच
चलते-फिरते, हंसते-खेलते,
आप ही की तरह, 
आप पहचान नहीं पाओगे,
पर ये खुद को पहचानते हैं,
इन्हें अपना अस्तित्व बनाए रखना है,
और 
इसीलिए खुद को छीपाए रखना है,
ये मयावी है और चतुर भी,
ये प्राय: स्वेत वस्त्र धारण करते हैं,
हितोपदेश की बातें बोलते हैं,
लोककल्याण के नारे लगाते हैं,
पर ये है रावण ही,
विनाश तक न तो इनका दंभ कमेगा,
न ही ये अहंकार की भाषा छोरेंगे,

आप इन्हें नहीं मार सकते,
क्योंकि
यह अजर है और अमर भी

आप ही तो हर वर्ष इसे
मरकर जिंदा होने का वरदान देते हैं,
आपकी बुराई में निष्ठा ही इसका बल है
आपकी सत्यनिष्ठा के बिना यह अड़ींग है, निश्चल है।

- हरि ओम शर्मा

(बैठ कर लिखा गया ख्यालों का एक पूलिंदा)

हर हर महादेव