आशाओं के दीप जला लो
फिर फैला दो आज उजाला
बेमन से जीवन में भर लो
तुम फिर से नवरस का प्याला
फिर से महका दो बगिया को
डाल-डाल पर पुष्प सजाकर
हर घर को रौशन कर दो तुम
द्वार-द्वार आंगन में जाकर
जीवन करवट रोज बदलती
सुख-दुख आते-जाते हैं
रोज चुनौती नई-नई दे
नई सिख सिखलाते है
जो सुख-दुख में नहीं बदलता
निश्चल अड़ींग सदा रहता है
उदय अस्त में एक सा रहता
जग का तिमिर वही हरता है।
हरि ओम शर्मा