जब उलट-पलट का नर्तन-गर्जन
सृष्टि पर आ गहराता है
तब कातर कंठ करुण नयनों से
भगवान पुकारा जाता है।
उमड़-घुमड़ घन नाद करें जब
मृत्यु नाश की लहर चले
धीरज के दीपक दीपित कर
पतवार चलाया जाता है
वर विज्ञान के निष्फल हो जब
मृत्यु दल-दल में जगती सारी
तब पुण्य-पुरुष को अर्पित कर तन
प्राण प्रकटाया जाता है।
है क्षुब्ध जीवन की प्यास लगी
इस धरती की जठराग्नि जगी
तब अनंत राज के महाजल कण से
यह आग बुझाया जाता है।
~ रुद्र प्रताप मिश्रा
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