पुकार

*मनुजता विकल है, लुटी जा रही है* 

मनुजता विकल है, लुटी जा रही है
पतन की कहानी, यहीं रोक दो मां
किसे हम पुकारे, किसे हम निहारे
हमारे लिए बस तुम्हीं एक हो मां.....🙏🙏

 तुम्हीं से मिली जिंदगी इस मनुज को
भटकते ना जाने कहां घुमते थे
अभी आ पड़ा है, जीवन पर मरण तो
रोते बिलखते तुम्हें ढुंढते हैं
जीवनदायिनी मां! इन्हें अब उबारो
इन्हें प्राण का उपहार दो मां.....🙏🙏

 जीवन-मरण में, लुटे जा रहे हैं
पतन की कहानी यहीं रोक दो मां.....🙏🙏

 जिन्हें धन मिला, वो फंसे थे अहम् में
सता दुसरों को स्वयं थे व्यसन में
स्वयं उनकी करनी अब परिणाम देती
अहंकार पर चोट कर प्रतिशोध लेती
पतित-पावनी तुम, इन्हें अब उबारो,
इन्हें प्रेरणा की नई ज्योत दो मां..🙏🙏

मनुजता विकल है, लुटी जा रही है
पतन की कहानी, यहीं रोक दो मां..🙏🙏

 *
- रुद्र प्रताप मिश्रा

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