काव्य मंजूषा 1

रावण मरा नहीं, रावन नहीं मरता, 
वह अजर है और अमर भी। 
आप हर साल उसके मरने की खुशी मनाते हो,
 पर भूल जाते हो 
कि अगले साल फिर आएगा। 
वह हर साल आकर 
ऋषियों का खून खिंचेगा,
देवताओं को तंग करेगा,
चहुंओर शांति भंग करेगा,
सीताओं को हरेगा
रामों को चुनौती देगा,
हर वर्ष,
उसका वंश खत्म होगा,
हर वर्ष,
उसका वंश पुनः जन्मेगा,
रावण ही नहीं ये सब भी,
अजर है और अमर भी,
ये नहीं मरते, ये नहीं मरेंगे,
आप हर साल इनके,
मरने की खुशी मनाते रहो,

ये नहीं मरें है, ये आपको मिलेंगे,
आपके गांव-समाज के बीच
चलते-फिरते, हंसते-खेलते,
आप ही की तरह, 
आप पहचान नहीं पाओगे,
पर ये खुद को पहचानते हैं,
इन्हें अपना अस्तित्व बनाए रखना है,
और 
इसीलिए खुद को छीपाए रखना है,
ये मयावी है और चतुर भी,
ये प्राय: स्वेत वस्त्र धारण करते हैं,
हितोपदेश की बातें बोलते हैं,
लोककल्याण के नारे लगाते हैं,
पर ये है रावण ही,
विनाश तक न तो इनका दंभ कमेगा,
न ही ये अहंकार की भाषा छोरेंगे,

आप इन्हें नहीं मार सकते,
क्योंकि
यह अजर है और अमर भी

आप ही तो हर वर्ष इसे
मरकर जिंदा होने का वरदान देते हैं,
आपकी बुराई में निष्ठा ही इसका बल है
आपकी सत्यनिष्ठा के बिना यह अड़ींग है, निश्चल है।

- हरि ओम शर्मा

(बैठ कर लिखा गया ख्यालों का एक पूलिंदा)

हर हर महादेव

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.