काव्य मंजूषा ४

इक मोर्चा घर पर है बैठा,
और इक मोर्चा सड़कों पर..
इक बैठा है बड़े चैन से,
इक उबल रहा है सड़कों पर...

इक का दम घुटता है घर में,
इक घर जाने को सड़कों पर..
इक को जान नहीं है प्यारी,
इक जान बचाता सड़कों पर...

इक का तकिया पड़ा सेज पर,
इक का तकिया सड़कों पर...
इक की थाली में है रोटी,
इक की रोटी सड़कों पर..

क्या हालत हो गई देश की,
आग लगी है सड़कों पर..

- हरि ओम शर्मा

सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया...
 हर हर महादेव 🙏🙏

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