गीत मंजूषा

१.साधु चला निज धाम रे।
दर-दर भटकन खत्म हो गई, मिल गया ऐसा ठाम रे।
घिसती  ऐंड़ी आज  हंसी  है, दर्द  हुआ आराम   रे।
अलख निरंजन अलख निरंजन जाप रहा है नाम रे।
अब  तो मौज  मनावे  साधु, करना  है  विश्राम रे।
कहे 'हरिहर' बोल रहे मनवा क्या बांकी है काम रे।
-हरि ओम शर्मा

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