विधाता ने मेरे, है क्या मन में बोया..
न जाने कहां पर, हूं आकर मैं खोया..
न संगी, न साथी, न बंधु, न मितवा..
न अपना-पराया, न शत्रु न हितवा..
न जाने कहां फंस गया हूं मैं आकर ।
हूं बैठा किनारे, मैं नैय्या डुबाकर ।
बस इक आस है,कोई मुझको पुकारे।
लिए अपनी गोदी में, मुझको दुलारे।
सुनो मां!
कहां हो? तुम आ जाओगी न?
पुनः मेरे मस्तक को सहलाओगी न?
कहो और कितने दिवस युं गुजारूं?
कहो कैसे स्वर में मैं तुमको पुकारूं?
क्षमा दो दया दो मुझे अब बचा लो..
शरण में हूं आया गले से लगा लो..
- हरि ओम शर्मा
हर हर महादेव
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