काव्य मंजूषा ६


हे देव! दिवस ऐसा भी हो।

हर स्वर में एकल राग उठे,
हर हवन कुंड से आग उठे,
सोया  हर चेतन जाग उठे,
हर उर से जड़ता भाग उठे।

हे देव! दिवस ऐसा भी हो।

गागर से अमृत छलक उठे,
हर रोम-रोम फिर पुलक उठे,
चिंगारी हर दिल  सुलग उठे,
सोयी ऊर्जाएं  से धधक उठे।


हे देव! दिवस अब ऐसा  हो।

किसी ओर से युं तुफान आए,
आलसी तनों में प्राण आए,
हर नर में स्वाभिमान आए,
ऊंचा जन-मन-गण गान आए।

हे देव! दिवस ऐसा ही हो।

भारत माता सम्मान पाए,
 ऐसा हम किर्तिमान लाएं,
हम फिर खोई पहचान पाए,
जन-जन जिससे कल्याण पाए।

हे देव! दिवस अब ऐसा दो।

 -हरि ओम शर्मा

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