*कोरोना काल की एक कविता*
कोई चाबी का छल्ला,
किसी कोने का बल्ला,
किसी के घर की खुरपी,
किसी दर्जी की कुरती,
कोई टुटा खिलौना,
कोई सुना बिछौना,
बहुत दिन से, युं ही
सुना पड़ा है।
सभी कष्टों से अपने,
दुर जाना चाहते हैं।
समस्या एक है,
सब पार पाना चाहते हैं।
मगर संशय यही है,कि
किसी को धन नहीं है,
किसी को मन नहीं है।
- हरि ओम शर्मा
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