काव्य मंजूषा ५

आपाधापी के पिछे भी एक निश्चित आपाधापी थी।
आपाधापी के आगे भी एक निश्चित आपाधापी है।
आए थे आपाधापी थी, जाओगे आपाधापी है।
जाकर के वापस आओगे, देखोगे आपाधापी है।
फिर क्यों बंजारा मन मेरा, युं बना हुआ संतापी है।
अब आ ही गए तो क्या डालना, 
                             "चलने दो! आपाधापी है।"  
- हरि ओम शर्मा 

 हर हर महादेव 🙏 🙏

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