कोरोना में बिहार के हालात बयां करती एक कविता।
हाहाकार मचा है देखो, फिर डर गया जवान,
फिर समेट कर बोरा-बिस्तर वापस चला जवान,
वापस चला जवान, अभी भी है परेशानी
लेकर जाने वाले करते खींचा-तानी
विपदा में भी लुट मची है, नियम ऐसा
रेलमंत्री मांग रहा ढोने का पैसा,
पैसा का है खेल, अभी भी आना-जाना?
पी०एम० जी क्यों बांट रहे घर-घर में दाना?
दाना भी बन बवंडर, क्या बतलावें
हर बोरी पर लूट मची है, किसे सुनाएं
दाना पर भी घुसखोरों ने घात लगाया।
व्यर्थ हुआ हर प्रण, जो भारत मां ने खाया।
लाकडाउन में बना, यहां का नियम ऐसा।
पुलिस मांगती, बाॅर्डर पार करा कर पैसा।
हर दुकान वाले को चाहिए अधिक मुनाफा
हर कोई मांगे भीख माथ पर बांधे साफा।*
कहे कवि यह बात, बचा अब कोई न चारा।
सोचों किससे जूझ रहा है देश हमारा।
सब अपनी जेबें भरने को दौड़ रहे हैं।
भोली जनता को सब यहां भमोड़ रहें हैं।*
:-हरि ओम शर्मा
लेखक, कवि, शिक्षक
(बिहार राज्य के मूल निवासी)
कविता में दो देशी शब्द प्रयोग हुए हैं ।
१. साफा =पगड़ी
२. भमोड़= नोच
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