शास्त्री जी का अनोखा जीवन

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आपने कहावत तो सुनी ही होगी कि - "सादा जीवन उच्च विचार"।आज हम एक ऐसे व्यक्ति का जीवन के प्रसंग लाए हैं जो किसी पहचान के मोहताज नहीं। 

"जय जवान जय किसान" के नारों से मां भारती के सपुतों में असीम ऊर्जा भरती एक छोटे से कद के बहुत बड़े व्यक्ति श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जीवन आज के शानो-शौकत के दीवाने नेताओं को अवश्य समझने का प्रयास करना चाहिए।
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लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बनने वाले ऐसे सरल और साधारण व्यक्ति थे जिनके जीवन का आदर्श प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वही रहा।

भारत में बहुत कम लोग ऐसे हुए हैं जिन्होंने समाज के बेहद साधारण वर्ग से अपना जीवन शुरू कर देश के सबसे पड़े पद को प्राप्त किया।

चाहे रेल दुर्घटना के बाद उनका रेल मंत्री के पद से इस्तीफा हो या 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उनका नेतृत्व या फिर उनका दिया 'जय जवान जय किसान' का नारा, लाल बहादुर शास्त्री ने सार्वजनिक जीवन में श्रेष्ठता के जो प्रतिमान स्थापित किए हैं, उसके बहुत कम उदाहरण मिलते हैं।

लाल बहादुर शास्त्री की 110वीं वर्षगांठ के अवसर पर रेहान फजल याद कर रहे हैं उनके जीवन से जुड़े़ कुछ नायाब पहलुओं को।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाला लाजपतराय ने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक सहायता प्रदान करवाना था। आर्थिक सहायता पाने वालों में लाल बहादुर शास्त्री भी थे।

उनको घर का खर्चा चलाने के लिए सोसाइटी की तरफ से 50 रुपए प्रति माह दिए जाते थे। एक बार उन्होंने जेल से अपनी पत्नी ललिता को पत्र लिखकर पूछा कि क्या उन्हें ये 50 रुपए समय से मिल रहे हैं और क्या ये घर का खर्च चलाने के लिए पर्याप्त हैं ?

ललिता शास्त्री ने तुरंत जवाब दिया कि ये राशि उनके लिए काफी है। वो तो सिर्फ 40 रुपये ख़र्च कर रही हैं और हर महीने 10 रुपये बचा रही हैं।

लाल बहादुर शास्त्री ने तुरंत सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी को पत्र लिखकर कहा कि उनके परिवार का गुज़ारा 40 रुपये में हो जा रहा है, इसलिए उनकी आर्थिक सहायता घटाकर 40 रुपए कर दी जाए और बाकी के 10 रुपए किसी और जरूरतमंद को दे दिए जाएं।
शास्त्री जी की दिलचस्प कहानियां ----

1. ट्रेन से कूलर निकलवाया

बात तब की है जब शास्त्रीजी रेल मंत्री थे। वे मुंबई जा रहे थे। उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था। गाड़ी चलने पर शास्त्रीजी बोले- डिब्बे में काफी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है। उनके पीए कैलाश बाबू ने कहा- जी, इसमें कूलर लग गया है। 
                      शास्त्रीजी ने पैनी निगाह से उन्हें देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा- कूलर लग गया है? बिना मुझे बताए? आप पूछते क्यों नहीं? क्या और लोगों को गर्मी नहीं लगती होगी? 
                       शास्त्रीजी ने कहा- कायदा तो यह है कि मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए, पर जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए। उन्होंने कहा, आगे गाड़ी जहां रुके, पहले कूलर निकलवाइए। फिर क्या मथुरा स्टेशन पर कूलर निकलवाया गया। आज भी फर्स्ट क्लास के उस डिब्बे में कूलर की जगह लकड़ी जड़ी है।
                      

2. लोन लेकर खरीदी कार

शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने तक उनका अपना घर तो क्या एक कार तक नहीं थी। एक बार उनके बच्चों ने उलाहना दिया कि अब आप भारत के प्रधानमंत्री हैं। अब हमारे पास अपनी कार होनी चाहिए।

उस ज़माने में एक फ़िएट कार 12,000 रुपए में आती थी। उन्होंने अपने एक सचिव से कहा कि जरा देखें कि उनके बैंक खाते में कितने रुपए हैं? उनका बैंक बैलेंस था मात्र 7,000 रुपए। अनिल याद करते हैं कि जब बच्चों को पता चला कि शास्त्री जी के पास कार खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं तो उन्होंने कहा कि कार मत खरीदिए।

लेकिन शास्त्री जी ने कहा कि वो बाकी के पैसे बैंक से लोन लेकर जुटाएंगे। उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक से कार खरीदने के लिए 5,000 रुपए का लोन लिया। एक साल बाद लोन चुकाने से पहले ही उनका निधन हो गया।

उनके बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी ने सरकार की तरफ़ से लोन माफ करने की पेशकश की लेकिन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने इसे स्वीकार नहीं किया और उनकी मौत के चार साल बाद तक अपनी पेंशन से उस लोन को चुकाया।


3. बेटे का रिपोर्ट कार्ड खुद लिया

साल 1964 में जब शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो उनके बेटे अनिल शास्त्री दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़ रहे थे। उस जमाने में पैरेंट्स-टीचर मीटिंग नहीं हुआ करती थी। हां अभिभावकों को छात्र का रिपोर्ट कार्ड लेने के लिए जरूर बुलाया जाता था।

शास्त्री ने भी तय किया कि वो अपने बेटे का रिपोर्ट कार्ड लेने उनके स्कूल जाएंगे। स्कूल पहुंचने पर वो स्कूल के गेट पर ही उतर गए। हालांकि सिक्योरिटी गार्ड ने कहा कि वो कार को स्कूल के परिसर में ले आएं, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।

अनिल याद करते हैं, ''मेरी कक्षा 11 बी पहले माले पर थी। वो खुद चलकर मेरी कक्षा में गए। मेरे क्लास टीचर रेवेरेंड टाइनन उन्हें वहां देखकर हतप्रभ रह गए और बोले सर आपको रिपोर्ट कार्ड लेने यहां आने की जरूरत नहीं थी। आप किसी को भी भेज देते। शास्त्री का जवाब था, "मैं वही कर रहा हूं जो मैं पिछले कई सालों से करता आया हूं और आगे भी करता रहूंगा।"

रेवेनेंड टाइनन ने कहा, "लेकिन अब आप भारत के प्रधानमंत्री हैं।" शास्त्री जी मुस्कराए और बोले, "ब्रदर टाइनन मैं प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नहीं बदला, लेकिन लगता है आप बदल गए हैं।"

ऐसे कई किस्से हैं जिनमें शास्त्री जी की भोलापन और सादगी हमारा मन मोह लेती है।
ऐसे सच्चे देशभक्त को हमारा शत शत नमन....

Powerful Yuva

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